संक्षिप्त इतिहास
यह महाविद्यालय भगवती भागीरथी के पावन तट पर बिहार राज्य की राजधानी अति प्राचीन नगर पटना सिटी में अवस्थित हैं। जिसकी स्थापना स्वनाम धन्य श्री सेठ रामनिरंजन दास मुरारका जी के भूखण्ड पर 1876 ई. में हुई थी। इस महाविद्यालय का इतिहास सैंकड़ों वर्ष पुराना हैं। तब से इस महाविद्यालयमें अनेक लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों का योगदान रहा हैं। तथा अनेकों छात्र देश ही नहीं, अपितु विदेशों में भी उच्च पदों पर अवस्थित होकर अपना ज्ञान का प्रकाश फैलाते रहे हैं। वर्तमान में यह महाविद्यालय कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्थायी संबन्धन प्राप्त एक घाटानुदानित संबद्ध इकाई हैं। इस महाविद्यालय में सरकार के द्वारा प्रधानाचार्य सहित सहायक प्राचार्यो के कुल दस पद और शिक्षकेतर कर्मचारियों के कुल चार पद स्वीकृत हैं। इस महाविद्यालय में प्राच्य विषय में व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष, दर्शन के साथ-साथ आधुनिक विषयों में हिन्दी, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र एवं सामान्य संस्कृत की पढ़ाई होती हैं। इस महाविद्यालय के सभी शिक्षक कर्मियों को यू.जी.सी. का वेतनमान प्राप्त हैं और शिक्षकेतर कर्मियों को बिहार सरकार से प्राप्त वेतनमान प्राप्त हैं। इस महाविद्यालय का एक पुस्तकालय हैं जिसमें भारतीय संस्कृति एवं सभ्यताओं के पोषक अनेक मानक पुस्तकें हैं।
वर्तमान समय में सहायक प्राचार्यों के स्वीकृत पदों में मात्र तीन ही सहायक प्राचार्य कार्यरत हैं जिनका नाम क्रमशः डॉ० रामसागर मिश्र (दर्शन सह प्रभारी प्रधानाचार्य), डॉ० अमलेश वर्मा (व्याकरण), डॉ० अवधेश कुमार मिश्र (अंग्रेजी) हैं और शिक्षकेतर कर्मियों के चार पदों में मात्र एक ही कर्मचारी (आदेशपाल) श्री राज कुमार प्रसाद कार्यरत हैं। जिसके कारण महाविद्यालय के संचालन में असुविधाएं हो रही हैं। प्रबन्ध समिति के द्वारा शेष पदों पर नियुक्ति के लिए प्रयास जारी हैं। वर्तमान में यह महाविद्यालय अंगीभूतिकरण न होने के कारण प्रबन्ध समिति के द्वारा ही संचालित हैं।